नेपाल में बगावत: 19 की मौत, 13,500 कैदी फरार, अंतरिम सरकार की तलाश जारी
Nepal की सड़कों पर जनसैलाब
नेपाल, जो हमेशा से अपनी शांति, पर्वतीय सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है, इस समय एक ऐसे संकट से गुजर रहा है जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। सितंबर 2025 में नेपाल की राजनीति और समाज दोनों ही सबसे बड़ी परीक्षा से गुज़र रहे हैं। Gen-Z युवा आंदोलन ने देश की नींव हिला दी है।
सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाने के बाद शुरू हुआ यह आंदोलन देखते ही देखते संसद भवन तक पहुँच गया। पुलिस और सेना से भिड़ंत, मौतें, आगजनी, प्रधानमंत्री का इस्तीफ़ा और जेल ब्रेक जैसी घटनाओं ने पूरे देश में अराजकता फैला दी है।
आंदोलन की असली वजह: चिंगारी कैसे भड़की?
नेपाल के युवाओं का गुस्सा अचानक नहीं फूटा। इसकी जड़ें कई सालों से तैयार हो रही थीं।
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बेरोज़गारी: लाखों युवा नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
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विदेश पलायन: हर साल हज़ारों लोग खाड़ी देशों और भारत में कमाई के लिए निकल रहे हैं।
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भ्रष्टाचार: सरकारी विभागों में रिश्वतखोरी आम हो गई है।
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सोशल मीडिया बैन: फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म बंद कर दिए गए।
सरकार ने कहा कि ये कंपनियाँ टैक्स नियमों का पालन नहीं कर रहीं, लेकिन जनता ने इसे अपनी आवाज़ पर ताला समझा।
Gen-Z की एंट्री: “अब और नहीं”
नेपाल के Gen-Z युवाओं ने सोशल मीडिया बैन को अपनी ज़िंदगी पर हमला माना।
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पहले शांतिपूर्ण मार्च और धरना हुआ।
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फिर पुलिस के लाठीचार्ज और गोलीबारी ने गुस्से को भड़काया।
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“अब और नहीं” का नारा हर शहर में गूंजने लगा।
युवा नेताओं ने कहा –
👉 “हम सिर्फ इंटरनेट नहीं, अपनी पूरी आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं।”
संसद भवन पर धावा: नेपाल का सबसे बड़ा हंगामा
8 सितंबर को हालात पूरी तरह बेकाबू हो गए।
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हज़ारों प्रदर्शनकारी संसद भवन के गेट तोड़कर अंदर घुस गए।
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कई सरकारी दस्तावेज़ जलाए गए।
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मंत्रियों के घरों और पार्टी दफ्तरों में आग लगा दी गई।
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भीड़ ने संसद भवन पर कब्ज़ा कर लिया और झंडा बदलने की कोशिश की।
यह नज़ारा काठमांडू ही नहीं, पूरी दुनिया ने टीवी और सोशल मीडिया पर देखा।
मौत और मातम: पुलिस बनाम जनता
सुरक्षा बलों ने हालात काबू करने की कोशिश की लेकिन मामला बिगड़ता चला गया।
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पुलिस ने आँसू गैस और रबर बुलेट का इस्तेमाल किया।
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भीड़ पर गोलियाँ चलीं।
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रिपोर्ट्स के मुताबिक कम से कम 19 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए।
शव सड़कों पर बिछे रहे और अस्पतालों में लाशों की कतार लग गई। शहीद हुए युवाओं की ताबूत यात्रा ने पूरे देश को और भड़का दिया।
प्रधानमंत्री ओली का पतन
संसद भवन पर हमले और बढ़ते दवाब के बीच प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को इस्तीफ़ा देना पड़ा।
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इस्तीफ़े से पहले ओली ने कहा – “मैं खून-खराबा नहीं चाहता।”
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इस्तीफ़ा जनता की जीत और सत्ता के पतन का प्रतीक बन गया।
जेल ब्रेक: नेपाल का सबसे बड़ा अपराधी पलायन
राजनीतिक अराजकता का सबसे बड़ा नतीजा था जेल ब्रेक।
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लगभग 13,500 कैदी जेल से भाग निकले।
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इनमें खतरनाक अपराधी, गैंगस्टर और सोने के तस्कर भी शामिल थे।
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कुख्यात चूड़ामणि उप्रेती (₹4000 करोड़ के गोल्ड स्मगलिंग केस का आरोपी) भी भाग गया।
सीमावर्ती भारत के शहरों में अलर्ट जारी कर दिया गया।
अंतरिम सरकार की तलाश
अब सवाल है कि नेपाल की कमान कौन संभालेगा।
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सेना और आंदोलनकारियों के बीच बैठकें हो रही हैं।
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संभावित नामों में पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशिला कार्की और काठमांडू के मेयर बलेन्द्र शाह सबसे आगे हैं।
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विपक्ष नए चुनाव की मांग कर रहा है।
आंदोलन के बीच चटपटी घटनाएँ
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सफाई अभियान – प्रदर्शन के बाद कुछ युवाओं ने संसद भवन और सड़कों की सफाई शुरू कर दी।
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नेताओं के घर जलाए गए – कई बड़े नेताओं के घरों को भीड़ ने जला दिया।
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सोशल मीडिया वापसी – दबाव के चलते सरकार ने बैन हटाना पड़ा।
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संगीत और नारेबाज़ी – आंदोलन के दौरान युवाओं ने गाने बनाए और सड़कों पर गाकर माहौल बनाया।
जनता की मांगें
युवाओं की मुख्य मांगें हैं:
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बेरोज़गारी खत्म करने के लिए ठोस कदम।
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भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई।
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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी।
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निष्पक्ष चुनाव और पारदर्शी शासन।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
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भारत: नेपाल की सीमा पर निगरानी कड़ी कर दी गई।
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चीन: नेपाल में स्थिरता बनाए रखने की अपील की।
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अमेरिका और यूरोप: मानवाधिकार और लोकतंत्र की बहाली की मांग।
अर्थव्यवस्था पर असर
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पर्यटन पूरी तरह ठप हो गया।
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धार्मिक यात्राएँ भी प्रभावित हुईं।
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विदेशी निवेशक पीछे हटने लगे।
नेपाल आज इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। यह आंदोलन सिर्फ सत्ता बदलने का नहीं बल्कि व्यवस्था बदलने का है। Gen-Z युवाओं ने साफ कर दिया है कि अब उनकी आवाज़ दबाई नहीं जा सकती।
“नेपाल संकट 2025” आने वाले वर्षों में दक्षिण एशिया का चेहरा बदल सकता है। यह आंदोलन नेपाल को नए लोकतंत्र और पारदर्शिता की राह पर ले जा सकता है।
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